बात फूलों की...दरअसल इसकी, उसकी या मेरी बात नहीं हम सबकी बात है, आपने पिछले दिनों सीखा कि हमारा और पर्यावरण का भौतिक सम्बन्ध अपने निर्वाहन के लिए आखिर चाहता क्या है! अक्षरों की छाँह से निकल आप घने पेड़ों की छांह में पु न: आ गए. आइये देखें कि इस नील हरित मार्गदर्शन में आपने सीखा क्या है !
मार्गदर्शक:
हमारे बच्चे , हमारी मुस्कराहटें:
रोहिणी नक्षत्र की पीताभ ग्रीष्म के ऊष्मा भरे वातावरण मे भी सेज के वातायनों से रमणीय वायु के झोंके आते हैं इस हेतु हम शिक्षा के साथ प्रकृति शिक्षा का भी बंदोबस्त करते हैं!सेज यूनिवर्सिटी भोपाल ग्रीन क्रेडिट पाठ्यक्रम के अंतर्गत पर्यावरण से प्रेम करना सिखाता है. पौधों को लगाना, उनकी स्वाभाविक देखरेख और उनमेंखाद पानी की व्यवस्था, तथा उनकी निराई गुड़ाई इस पाठ्यक्रम का एक आवश्यक अंग है. तकनीकी एवं सैद्धांतिक विषयों के साथ साथ जब बच्चे प्रकृति की प्रतिकृति बनना सीख जाते हैं तो जीवन की विकट से विकट परिस्थिति से सामंजस्य बैठाना भी उनके लिए आसान हो जाता है।
यूनिवर्सिटी की छात्रा मुस्कान मीणा इस बारे में कहतीं हैं कि उन्हें ताज़ा गुलाबों की गंध बहुत पसंद है. अपने किचन गार्डन में उन्होंने ग्रीन क्रेडिट प्रोजेक्ट के चलते सुन्दर सुन्दर गुलाब उपजाये हैं. इन गुलाबों के ताज़ा रहने पर वह इनकी गंध का आनंद लेती हैं और दूसरे दिन इन की पत्तियों को तोड़ वे इसे अपने स्नान के पानी मिला हर्बल बाथ लेती हैं। वे गुलाबो की विशेष रूप से देखभाल करती हैं और कहती हैं की जब भी वे यूनिवर्सिटी आएँगी अपने साथ ताज़ा गुलाब भी सब लोगो के लिए लाएंगी। उनको इस बारे में भी पता है कि सेज यूनिवर्सिटी भोपाल के कैम्पस में भी सुन्दर, सुगन्धित , देसी गुलाबों की भरमार है. इसी से उन्हें यूनिवर्सिटी आने की बड़ी जल्दी है.
आदित्यराज पुरिया भी हरियाली के दीवाने हैं. वे ह्यूमेनिटीज़ के द्वतीय सत्र के छात्र हैं। ऑनलाइन कक्षा, जिम और म्यूज़िक के बाद बचा हुआ समय आदित्य प्रायः अपनी बगिया को देते हैं. फर्न, मनीप्लांट, क्रिसमस और करी पत्ता उन्हें विशेष रूप से पसंद है. कभी कभी माँ के साथ रसोई में हाथ बंटाने के कारण उन्हें रसोई उपयोगी पौधों की विशेष जानकारी भी है. इसी से उनके बगीचे में पोई , अज्वाइन, लैटूस और जवाकुसुम भी आप देख सकते हैं. वे पढ़ाई के साथ साथ कुकिंग में भी निपुण हैं और अपने बड़े भैया के साथ मिल कर किचन हर्ब्स की मदद से अक्सर स्वादिष्ट पिज़्ज़ा भी बना लेते हैं. यूनिवर्सिटी के सुन्दर कैम्पस में मित्रों के साथ बैठ अपने हाथों के बने पिज़्ज़ा की पार्टी करना उसका एक सुन्दर सपना है.
ममता पटेल, भविष्य की आईएएस ऑफिसर , कैम्पस की कोयल और एक मेधावी छात्रा है. पूरे मनोयोग से ग्रींन क्रेडिट के लैक्चर लेती ममता न केवल एक ज़िम्मेदार स्टूडेंट है बल्कि पर्यावरण के लिए भी अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी समझती है। घर, मातापिता, नन्हे से भाई बहिन, कॉलेज की एक्सट्रा करिक्यूलर एक्टीविटी के बाद भी ममता अपने नन्हे बगीचे को खूब समय दे लेती है. वह स्वभाव से ही सौंदर्य प्रेमिका है इसी से उसे क्रोटन्स के सुन्दर शेड्स खूब भाते हैं. वह रंग बिरंगे बटरफ्लाई के पंखो जैसे सुन्दर क्रोटन के अतिरिक्त पीले गुंजा और हलके गुलाबी कनेर भी पसंद करती है. गुलाबी रंग तो उसे इतना पसंद है कि हर गुलाबी पौधा वह अपने आँगन में ज़रूर रोपती है सदा बहार के सारे गुलाबी रंगों के अलावा उसे अपनी गुलाबी रंग की वह चुनर भी बहुत पसंद हैं जो पिछले जन्मदिन पर मम्मी ने उसे दिलवाई थी. बगीचे में ख़ास तौर पर उसे औषधिय पौधे लगाना पसंन्द है किन्तु इन दिनों घर पर एक नन्हा फैंटम (बड़ी दीदी का बेटा ) आया हुआ है इसी से उन्हें अपने पौधे उससे खूब बचा कर रखने होते हैं. आजकल उनके बगीचे में मिंट लीव्ज़ (पोदीना ) की बहार है.
इतिहास विषय से विशेष प्रेम रखने वाले , होनहार से कृषाल मालवीय पौधों से बहुत लगाव रखते हैं. उन्हें फूल के पौधों से अधिक पसंद है घरेलू चिकित्सा के कारोबारी पौधे. तुलसी से तो उन्हें विशेष प्रेम है. उन्हें पता है कि भारत देश में तुलसी की पूजा इसलिए की जाती है कि तुलसी रुग्णहर्ता और सर्वांगीर्ण उपयोगी पौधा है. वह बताते हैं की तुलसी के बौर, पत्तियां , जड़ें, बीज सभी गुणकारी होते हैं, वह विषाणु विनाशक और वायु शोधक पौधा है और इसका तेल भी औषधीय गुणों से भरपूर है. कृशाल की दादी माँ का कहना है कि तुलसी की पत्तियों का खाली पेट सेवन करने से उम्र , ताकत, बुद्धि, आयु व लम्बाई में वृद्धि होती है। इसी से कृषाल के घर में सभी तुलसी का नियमित सेवन करते हैं. और कृशाल भी इसे सदैव इस्तेमाल करते रहते हैं.
असम की सुंदर सुरम्य हरीतिमा से मैदानी यूनिवर्सिटी में प्रवेश ले सेज की विद्यार्थी बनी सिमरन सिंघा , स्वयं तो सुन्दर हैं ही उन्हें प्रकृति से भी बड़ा प्यार है. वे गुड़हल के फूलों के खरबूजी रंग पर बड़ी जान देती हैं. अपने आँगन में आम, जाम नीम बबूल तो वे रखती ही हैं अपने टैरेस गार्डन में उन्होंने चायना रोज़ भी उपजाया है. वे बताती हैं कि सिक्किम की महिलायें अपनी सुर्ख सफ़ेद रंगत की सुरक्षा एवं पोषण के लिए प्राय: ही गुड़हल के पौधों का इस्तेमाल करती हैं.
ग्रीन क्रेडिट पाठ्यक्रम सही मानो में कक्षा से हठ कर वनस्पति की गोद में पढ़ा जाने वाला वह पाठ्यक्रम है जो कक्षा के बाहर भी हमारे साथ जाता है. इसका महत्त्व आज नहीं बल्कि भविष्य की व्यवहारिक परिस्थितियों में तब समझ में आता है जबकि हम ग्रीन क्रेडिट से सीखी गयी विधियों का उपयोग दैनिक जीवन में करते हैं. इस आधार पर सेज यूनिवर्सिटी का पाठ्यक्रम बेजोड़ है.
- डॉ. सेहबा जाफरी।